सुरी स्तवोनि सिंधुजावारा |म्हणती असुर मारिला बरा|
परी हे तेज पसरले सैरावैरा | तेणे विश्व तापले |
तो विश्वपालक जगन्नाथ |जगपिडक मारिला दैत्य |
परी हर्षे उदयी भय अदभूत |अनर्थ वर्ते स्वामिया |
ऐकोनी देवाची करुणोत्तरे| नरहरी द्रवला कृपासागर |
परी कोपाग्नी आवरीता ना आवारे | मग विचार योजिला |
म्हणे मम स्वरूप चिद्रूप खाणी | पीतीसंगम कृष्णावेंणी|
सकळ सरिताची कुलस्वामिनी |श्रीमत करहाटक स्थित |
ते तव माझी तनु धारिणी | सारीतारूपे त्रितापशमनी|
थेथे समूळ हा कोपाग्नी | स्नान मात्रे तियेच्या |
ना ते सरिता परब्रह्म अंगे | त्रिवेणी त्रीपादा गायत्री संग |
ब्राह्ना विष्णू रुद्र निजांग | प्रीती मीनले जल रूपे |
जे श्री करहाटक पुण्य भुमिके |संगम त्रिगुणात्मक |
रज तम लोपोनी सत्वाची एक | श्री विष्णू जल रूपे राहिला |
तो हे अव्दयानंद शांत | सत्वाधिली प्रवाह भरित| नासी कोप संताप दुरित |
ऐसा निश्चय बाणला|
ऐसे विचारूनी अंतरी |हर्षे निर्भय तो नरहरी |
पातला करहाटक महाक्षेत्री |समस्त देवासहित |
कृष्ण्णाककुद्मती प्रीतीसंगमी|निकट क्षेत्र पुण्य भूमी |पाहोनी निमाला अंतर्यामी |समस्त देवासहित |
श्री कृष्णा जळी नर केसरी | रिघता सौम्य संताप लहरी | तद्रूप जाहला जल शारिरी | सत्वासत्व मीनले |
जैसा एकत्र उभय दीप्ती | होता प्रकाश कैची द्वैत भ्रांती | तैसी हरी तनु मूर्ती |
एकात्म स्थिती अभेद | ऐसा पाहुनी समारंभ | देवे मानुला परमलाभ| म्हणती चित्कला हे स्वयंभ | श्री कृष्णा विष्ण्णु प्रत्येक्ष |
हे श्री विष्ण्णुची स्वलीलाकृती | श्री कृष्ण्णावेणी | सत्व गुण शांती |नरहरी तामस क्रोध मूर्ती | कार्यकारण अवगला |
तदार्थ जाणोनी शांत सलीला | हरी तनु स्नाने सुस्नात जाहला | नरहरी सौम्यता पावला | आनंद जाहला सर्व जना|
छान :-)
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