Wednesday, August 3, 2011

shant narahari

सुरी स्तवोनि सिंधुजावारा |म्हणती असुर मारिला बरा|
परी हे तेज पसरले सैरावैरा | तेणे विश्व तापले | 
तो विश्वपालक जगन्नाथ |जगपिडक मारिला दैत्य |
परी हर्षे उदयी भय अदभूत |अनर्थ वर्ते स्वामिया |
ऐकोनी देवाची करुणोत्तरे| नरहरी द्रवला कृपासागर |
परी कोपाग्नी  आवरीता ना आवारे | मग विचार योजिला |
म्हणे मम स्वरूप चिद्रूप खाणी | पीतीसंगम कृष्णावेंणी| 
सकळ सरिताची कुलस्वामिनी |श्रीमत करहाटक स्थित |
ते तव माझी तनु धारिणी | सारीतारूपे  त्रितापशमनी| 
थेथे  समूळ हा कोपाग्नी | स्नान मात्रे  तियेच्या |
ना ते सरिता परब्रह्म अंगे | त्रिवेणी  त्रीपादा  गायत्री  संग |
ब्राह्ना विष्णू रुद्र निजांग | प्रीती मीनले  जल रूपे |
जे श्री करहाटक  पुण्य भुमिके |संगम  त्रिगुणात्मक |
रज तम  लोपोनी  सत्वाची  एक | श्री विष्णू  जल रूपे राहिला |
तो हे अव्दयानंद  शांत | सत्वाधिली  प्रवाह भरित| नासी कोप संताप  दुरित |
ऐसा निश्चय  बाणला|
ऐसे  विचारूनी अंतरी |हर्षे निर्भय तो नरहरी |
पातला करहाटक महाक्षेत्री |समस्त देवासहित |
कृष्ण्णाककुद्मती  प्रीतीसंगमी|निकट क्षेत्र पुण्य  भूमी |पाहोनी  निमाला अंतर्यामी |समस्त देवासहित |
श्री कृष्णा  जळी नर केसरी | रिघता सौम्य  संताप लहरी | तद्रूप जाहला  जल शारिरी | सत्वासत्व मीनले |
जैसा एकत्र उभय दीप्ती | होता प्रकाश कैची द्वैत  भ्रांती | तैसी हरी तनु मूर्ती |
एकात्म स्थिती  अभेद | ऐसा पाहुनी समारंभ | देवे मानुला परमलाभ| म्हणती चित्कला  हे स्वयंभ | श्री कृष्णा  विष्ण्णु  प्रत्येक्ष |
हे  श्री विष्ण्णुची स्वलीलाकृती | श्री कृष्ण्णावेणी | सत्व गुण शांती |नरहरी  तामस क्रोध मूर्ती | कार्यकारण  अवगला |
 तदार्थ  जाणोनी  शांत सलीला | हरी तनु स्नाने सुस्नात  जाहला | नरहरी सौम्यता  पावला | आनंद जाहला सर्व जना|

1 comment:

  1. छान :-)
    माझ्या ब्लॉगचा पत्ता:
    http://www.prashantredkarsobat.blogspot.com/

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