Sunday, July 31, 2011

एकादश श्री लक्ष्मी नरसिंह

बरसल्या श्रावणसरी ,बांधिले इंद्रधनुष्याचे तोरण |चैतन्याने भरली सृष्टी  व्रतवैक ल्याचे होता आगमन |
पानाफुलाचा  सुगंध ,प्रसन्न वातावरण |निसर्गाचे गंधर्व गान |आनंदाला कारण |दुर्गा सप्तशतीचे पाठ ,गुरुचरित्राचे मनन |
भागवताची कथा ,करू माउलीचे स्मरण |

एकादश श्री लक्ष्मी नरसिंह  प्रसन्न 
एकादश श्री लक्ष्मी नरसिंह  स्थान महात्मं |
प्रथमे मुल्स्थानं च द्वितीये ज्योतिर्मठे |
वाराणस्यां तृतियं च चतुर्थे नर्मदा तटे ||
पञ्चमे सिन्धुर गिरौ  षष्टं च मेघंकरे|
सिहाचले सप्तमं च अष्टमे गिरी मङ्गल्लौ 
नवमे कर्पुरवनंच दशमे संगमेश्वरौ |
अचल छाया गिरौ मेरु अहोबिले श्वेकादशे ||
एतानि एकादश स्थानानि नित्य नृसिंह निवसिनौ |
भक्तावर प्रदस्याथ्रे हस्त ऊर्ध्वे विरोभ्यताम||
सर्वस्थानो अथवा एको यः पूजनं कुरुते नरः |
पढते सहस्त्र नामे भवेदीच्छा परि पूर्तये ||

१. मूल स्थान म्हणजेच मुलतान 
२. ज्योतिर मठ
३. ज्वाला नरसिंह वाराणसी 
४. दोष शालान नरसिंह 
५. सिन्धुर गिरी रामटेक
६. मेहेकर 
७. सिहा चलं 
८. मङ्गल गिरी  
९. कोप्पर 
१०. संगमेश्वर् 
११. अहोबिल 

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